चावल की सही समय पर लिफ्टिंग न होने से North Haryana Rice Millers Association  के Rice Millers को रोजाना लग रहा है लाखों का चूना : श्री विशाल अरोड़ा

 

पिछले चार सीजन के लगभग 500 करोड़ रुपए लंबित के कारण बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं  CMR का कार्य कर रहे उत्तरी हरियाणा के राइस मिलर्स : श्री सतपाल गुप्ता

चंडीगढ़, राखी: चंडीगढ़ प्रेस क्लब में उत्तरी हरियाणा राइस मिलर्स एसोसिएशन जिसमें अम्बाला यमुनानगर और पंचकूला जिले के 500 से ज्यादा राइस मिलर्स ने अपनी मांगो और सरकारी खरीद एजेंसीज (फ़ूड एंड सप्लाई, हैफेड, एचडब्ल्यूसी) के द्वारा समय पर चावल लिफ्टिंग न होने के कारण हो रहे घाटे को विख्यात करने के लिए एक प्रेस कॉनफेरेन्स का आयोजन किया। जिसका मुख्य मंतव्य आगामी खरीफ मार्किटिंग सीजन 2024-25 में कस्टम मिलड राइस (सीएमआर) कार्य के बारे सुचना एवं प्रार्थना करने हेतू है। इस प्रेस कांफ्रेंस में लगभग 500 राइस मिलर के मालिकों ने सिरकत की। उत्तरी हरियाणा राइस मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सतपाल गुप्ता, सचिव विशाल अरोड़ा, कोषाध्यक्ष श्री राहुल अग्रवाल, कार्यकारी सदस्य श्री अशोक कालरा, श्री मनीष बंसल और श्री मनमोहन चोटानी की अध्यक्षता में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। विशाल अरोड़ा ने बताया कि उत्तरी हरियाणा के राइस मिलर्स जोकि पिछले 20 वर्षों से सीएमआर का कार्य कर रहे हैं, आज बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। प्रेस कांफ्रेंस के जरिये खरीद एजेंसीज (फ़ूड एंड सप्लाई, हैफेड, एचडब्ल्यूसी) व सरकार से उत्तरी हरियाणा के राइस मिलर्स असोसिएशन ने अपील है कि उनकी समस्याओं पर जल्द से जल्द विचार कर समाधान किया जाए। सतपाल गुप्ता ने बताया कि हरियाणा के राइस मिलर्स के पिछले चार सीजन (केएमएस 2020-21, खरीफ मार्किटिंग सीजन 2021-22, खरीफ मार्किटिंग सीजन 2022-23, खरीफ मार्किटिंग सीजन 2023-24)) के मिलाकर कुल लगभग 500 करोड़ रुपए लंबित है जिसमें अनलोडिंग, स्टैकिंग, ट्रांसपोर्टेशन किराया, डरायज, स्टॉक आर्टिकल्स का किराया इत्यादि शामिल है। गत वर्ष (खरीफ मार्किटिंग सीजन 2023-24) सरकारी गोदामों में जगह न होने के कारण चावल की डिलीवरी लेट हुई जिसके कारण मिलर्स को बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है। आज भी हरियाणा के मिलर्स की 2.5 लाख मीट्रिक टन राइस की डिलीवरी पेंडिंग है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए उत्तरी हरियाणा के राइस मिलर्स आगामी सीजन (खरीफ मार्किटिंग सीजन 2024-25) में सीएमआर कार्य करने में असमर्थ हैं। उत्तरी हरियाणा राइस मिलर्स एसोसिएशन ने सरकार व खरीद एजेंसियों से अनुरोध  किया है कि पिछली बकाया राशि का जल्द से जल्द भुगतान किया जाए। आगामी सीजन के लिए उत्तरी हरियाणा राइस मिलर्स एसोसिएशन की समस्याओं जैसे कि आगामी सीजन के लिए चावल लगाने जगह की पुष्टि करें, मिलिंग चार्जेज 10 रूपये प्रति क्विंटल से बढ़ा कर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की तर्ज पर 120 रुपए प्रति क्विंटल की जाये। सीएमआर डिलीवरी के लिए चावल के यील्ड की मात्रा 67% से घटा कर 62% की जाए, ब्रोकन राइस की मात्रा 25% से बढ़ाकर 35% ब्रोकन राइस की जाये आदि का जल्द से जल्द समाधान करें। उत्तरी हरियाणा राइस मिलर्स एसोसिएशन ने कहा कि अगर राइस मिलर्स की मांगे नहीं मानी गई तो सरकारी खरीद एजेंसियों से कोई एग्रीमेंट या रजिस्ट्रेशन नहीं करेंगे।

Note: एफसीआई व खरीद एजेंसियों के पास आगामी सीजन (खरीफ मार्किटिंग सीजन 2024-25) में हमारे राज्य में चावल लगाने के लिए गोदामों में जगह नहीं है आलू बेटा और न ही कोई पुख्ता इंतज़ाम है। इस स्थिति में मिलर्स के लिए आगामी सीजन (खरीफ मार्किटिंग सीजन 2024-25) में CMR कार्य करना नामुमकिन है। हमारी खरीद एजेंसियों व सरकार से मुख्य मांगे इस प्रकार हैं: पिछली बकाया राशि (500 करोड़ रूपये) का जल्द से जल्द भुगतान किया जाये चावल लगाने कि पर्याप्त जगह उपलब्ध करवाई जाये। CMR डिलीवरी में चावल का यील्ड परसेंटेज कम किया जाये (67% से 62% किया जाये) CMR डिलीवरी में ब्रोकन राइस (टुकड़ा) का परसेंटेज बढ़ाया जाये (25% से 35% किया जाये) Driage परसेंटेज से 0.5% से 2% बढ़ाई जाये। मिलिंग चार्जेज बढ़ाये जाये। (10 रूपये से 120 रूपये प्रति क्विंटल किये जाएं)। पिछले 20-25 सालों से मिलिंग चार्जेज 10 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से ही मिल रहे हैं। बारदाना डेप्रिसिएशन बिना बिल के 14.19 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से राइस मिलर्स को मिले पिछले सालों के बकाया (अनलोडिंग एंड स्टैकिंग, वुडेन क्रेट्स एंड पोलिकोवेर्स) राशि राइस मिलर्स को दी जाये। राइस मिल से गोदाम तक चावल लगाने का मिलर्स को उचित किराया मिलना चाहिए। राइस मिलर्स द्वारा अपने शेलर में धान (पैडी) रखने का पर्याप्त किराया मिलना चाहिए। मिलिंग पॉलिसी सितम्बर के पहले हफ्ते में आ जानी चाहिए ताकि मिलर्स पालिसी कि कंडीशन देख कर अपना डिसीजन ले सकें। एक बार पालिसी इशू होने के बाद कोई ऐसे गाइडलाइन्स नहीं आनी चाहिए जिसके कारण मिलर्स को आर्थिक नुकसान हो।

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