माना मातृभूमि भारत से बहुत ही दूर बैठी हूं, पर ओढ़ आंचल संस्कृति का यहां भी रहती हूं…
चण्डीगढ़, राखी : महर्षि दयानंद पब्लिक स्कूल, दरिया में सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. सरिता मेहता के जन्मदिन पर बाल काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस काव्य गोष्ठी में लगभग 50 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिकागो, अमेरिका से पधारे एनआरआई सुदर्शन गर्ग थे। विद्यार्थियों ने डॉ. सरिता मेहता की रचना सर्वश्रेष्ठ भारत की बेटी प्रस्तुत करते हुए कहा- माना मातृभूमि भारत से बहुत ही दूर बैठी हूं, पर ओढ़ आंचल संस्कृति का यहां भी रहती हूं। मोहब्बत भरे दो शब्द रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- मोहब्बत भरी दो शब्द, हवा में उछाल दो न.., गिले शिकवे और रंज, पल भर में मिट जाएंगे। बंधी संस्कारों से रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- बहुत मजबूत हूं, कठिनाइयों से घबराती नहीं, पर फिर भी कभी-कभी, खुद से ही हार जाती हूं। कल्पनाओं का नया आकाश प्रस्तुत करते हुए कहा- आओ फिर से जुटा लें हिम्मत, दे कल्पनाओं को नया आकाश। मुट्ठी से रेत सी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-: मुट्ठी से रेत सी फिसल रही है जिंदगी, सागर की हर लहर सी, कभी खुशी से गुदगुदाती। नारी को सम्मान दे दो रचना प्रस्तुत करते हुए- नारी को न बस सिर्फ समझो नारी ही, उचित मान- सम्मान अधिकार तुम दे दो। अनकहे जज्बात रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- गुजरे वक्त में केवल एक ही रंज रह गया, लिखा था प्रेम पत्र जो उसे वह मेरे ही संग रह गया। रूबरू होगी मुलाकात कभी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- मेरी आंखों में बसे हैं ख्वाब कई, उन्हें ख्वाबों में बसी तस्वीर कोई। स्नेह पाती: फौजी भाइयों के नाम रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- अच्छी तरह जानती हूं मेरे प्यारे फौजी भाई, दूर सरहद पर तुम पर क्या-क्या गुजरती है। मन्नतों का धागा प्रस्तुत करते हुए कहा- सुनो खोल दिया है मैंने आज, अपने ही हाथों से अपनी अपूर्ण इच्छाओं का, दो मन्नतों का धागा, जो बांधा था तुम्हारे लिए। विद्यार्थियों ने डॉ सरिता मेहता के लिए जन्मदिन के ग्रीटिंग कार्ड भी बनाए। प्रतिभागियों को स्टेशनरी और काव्य त्रिवेणी पुस्तक भेंट की गई। स्कूल की वाइस प्रिंसिपल अंजू मोदगिल ने सभी बाल कवियों द्वारा डॉ. सरिता मेहता की रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए शाबाशी दी और डॉ. मेहता को जन्मदिन की बधाई दी। स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. विनोद शर्मा ने बताया कि इस जन्म दिवस पर बाल काव्य गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य बच्चों को अपने जन्म दिवस पर सबसे पहले अपने जन्मदाता माता-पिता के तप-त्याग और बलिदानों, उनके निस्वार्थ प्रेम को महसूस कर और उन्हें सादर प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेना सिखाना है। बच्चों की जिन्दगी में माता- पिता का कितना महत्व है, यह महसूस कर सकें। बच्चों के मन में साहित्य के प्रति जागरूकता पैदा करना, रुचि और चेतना जगाना तथा उन्हें अपने मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना और बाल साहित्य तैयार करना है। यह जन्म दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाएगा।